जून 18,2025
Able Archer 83: इतिहास की सबसे खामोश किन्तु भयावह रात
शांति कभी स्थायी नहीं होती। वह एक क्षणिक विराम है, जिसमें मनुष्य भूलने लगता है कि युद्ध क्या होता है। और जब स्मृति शिथिल होती है, तब इतिहास दुहराने की ज़रूरत नहीं होती — वह खुद-ब-खुद लौट आता है। सन् 1983, नवम्बर की शुरुआत — एक ऐसा ही समय था। शीतयुद्ध अपनी चरम सीमा पर था। दुनिया दो ध्रुवों में बँटी हुई थी — एक ओर अमेरिका, दूसरी ओर सोवियत संघ। दो महाशक्तियाँ, दो विश्वदृष्टियाँ, और दो उंगलियाँ — परमाणु बटन के सबसे पास।
‘एबल आर्चर 83’ — नाम जितना साधारण, घटना उतनी ही असाधारण। यह नाटो देशों द्वारा किया गया एक अभ्यास था, एक सामरिक प्रशिक्षण — पर सोवियत रूस ने इसे सिर्फ़ अभ्यास नहीं माना। उनके लिए यह एक छद्म था, एक आड़, जिसके पीछे अमेरिका शायद परमाणु युद्ध शुरू करने वाला था। और यही वह क्षण था, जब इतिहास की साँसें रुक गईं।
रूस ने अपने न्यूक्लियर बम तैयार कर लिए थे, सैनिक अलर्ट मोड में थे, मिसाइलें रॉकेट-तंत्र में लोड की जा रही थीं — और पूरी दुनिया, अनजान थी कि हम सब एक अंत के मुहाने पर खड़े हैं। यह एक ऐसी रात थी, जब पृथ्वी पर शांति थी, लेकिन आकाश में विनाश मँडरा रहा था। कोई युद्ध नहीं हुआ — पर जो भय उत्पन्न हुआ, वह युद्ध से भी अधिक गूंजता रहा।
वह भय केवल तकनीकी ग़लतफ़हमी नहीं था — वह मनुष्यता के संदेह की सीमा थी। जब दो सभ्यताएँ एक-दूसरे की नीयत नहीं समझ पातीं, तो बटन दब जाने और न दब पाने में केवल एक सेकंड का फासला रह जाता है। और कभी-कभी वह फासला सिर्फ़ एक इंसान की अंतरात्मा से तय होता है।
सेर्गेई एंड्रोपोव, केजीबी का मुखिया — जिन्होंने चेतावनी दी, और तनाव को नियंत्रित किया। अमेरिका के कुछ विश्लेषकों ने भी देखा कि यह भ्रम कितना घातक है। एक असली युद्ध नहीं हुआ, पर मनुष्यता ने उस दिन अपने ही बनाए हुए हथियारों की संभावित अंतहीनता को महसूस किया।
‘एबल आर्चर 83’ को इतिहास की पुस्तकों में एक छोटी सी घटना के रूप में लिखा गया, पर वह वास्तव में एक मौन त्रासदी थी — एक ऐसा युद्ध जो नहीं हुआ, लेकिन जिस की छाया आज भी हमारे ऊपर है। यह वह क्षण था, जब समय ठहर सकता था — और फिर कभी आगे न बढ़ता।
आज, जब हम नई तकनीकों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और साइबर हथियारों की बात करते हैं, तब यह घटना एक सर्प की तरह हमें घेरती है — और फुसफुसाकर कहती है: "तुम फिर भूल रहे हो... मैं फिर लौट सकता हूँ"।
क्योंकि जब मनुष्य अपनी ही बनाई शक्तियों से डरना छोड़ देता है,तब वे शक्तियाँ उसकी चेतना को निगल जाती हैं।और तब, इतिहास फिर अपने चक्र में लौट आता है —इस बार विनाश को पूरा करने