द ग्रेट गेम: जब भारत बना था दो साम्राज्यों की चुप जंग का मैदान

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जून 18,2025

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द ग्रेट गेम: जब भारत बना था दो साम्राज्यों की चुप जंग का मैदान

उन्नीसवीं सदी के मध्य में, दुनिया दो ओर से साँस ले रही थी —एक ओर था ब्रिटिश साम्राज्य, जिसकी आँखों में भारत बसता था,और दूसरी ओर था रूसी विस्तारवाद, जो हिमालय को पार कर दक्षिण की ओर बढ़ रहा था।

भारत के उत्तरी दर्रों में, अफ़ग़ानिस्तान की सीमाओं पर,ऐसा संघर्ष चल रहा था जिसे इतिहास ने "The Great Game" कहा —एक ऐसा खेल, जो तोपों से नहीं, चालों और जासूसों से खेला गया।

ब्रिटेन को डर था कि अगर रूस अफ़ग़ानिस्तान तक पहुँच गया,तो वह भारत की तरफ़ बढ़ सकता है।और इसी डर से 1839 में ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान में हस्तक्षेप किया —एक राजा को हटाकर अपना समर्थक शाह शुजा सिंहासन पर बिठा दिया।पर अफ़ग़ानिस्तान ने वो सहा नहीं —1842 में, एक पूरी ब्रिटिश सेना, करीब 16,000 सैनिक, मारी गई।केवल एक अंग्रेज़ — डॉ. ब्रायडन — ज़िंदा लौट सका। उसके बाद भी लड़ाई बंद नहीं हुई —रूस मध्य एशिया में आगे बढ़ता गया,और ब्रिटेन भारत की सीमाओं पर क़िले और चौकियाँ बनाता गया।

कश्मीर, गिलगित और तिब्बत — ये सब उस खेल की बिसात पर रखे मोहरे बनते चले गए।जासूस भिक्षु बनकर पहाड़ों में गए,कारवाँ बनकर नक्शे बनाए,और गुप्त संदेशों से साम्राज्य रचते रहे।

यह युद्ध केवल भूगोल का नहीं था —यह विश्वास और भविष्य का युद्ध था।भारत, जो कभी विचारों का केंद्र था,अब एक घेराबंदी बन गया —जहाँ विदेशी शक्तियाँ उसकी सीमाओं में अपनी लड़ाइयाँ लड़ रही थीं।

1907 में एक समझौता हुआ —ब्रिटेन और रूस ने तय किया कि कौन किस क्षेत्र में प्रभाव बनाएगा।पर तब तक, भारत के भूगोल में संदेह की रेखाएँ खींच दी गई थीं,जो आज भी कश्मीर और अफ़ग़ान सीमाओं में गूंजती हैं।

"द ग्रेट गेम" एक ऐसा इतिहास है,जिसमें भारत कभी खिलाड़ी नहीं बना,बस एक मैदान बना —और यही उसकी सबसे बड़ी त्रासदी रही।

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