समय का चक्र: इतिहास क्यों लौटकर आता है?

समय

जून 18,2025

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समय का चक्र: इतिहास क्यों लौटकर आता है?"

समय को हम अक्सर एक रेखा मान बैठते हैं — आरंभ से अंत तक जाती हुई एक सीधी राह। किंतु भारतीय मनीषा ने उसे सदा एक चक्र के रूप में देखा है। एक वृत्त, जो न आदि जानता है, न अंत। वह निरंतर घूमता है — उसी बिंदु पर लौटता हुआ, जहाँ से चला था, लेकिन हर बार एक नए आवरण में। इतिहास को जब हम पढ़ते हैं, तो लगता है जैसे वह बीत गया। परंतु वास्तव में वह केवल बदल कर लौटता है — वही प्रवृत्तियाँ, वही स्वभाव, वही निर्णय, और वही विनाश।

महाभारत में जो भ्रांति थी, वही आज की सत्ता में है; जो अंधकार शकुनि की आँखों में था, वह आधुनिक कूटनीति के गलियारों में तैरता है। नालंदा की आग इतिहास में एक बार लगी थी, पर विचारों की हत्या बार-बार होती रही है। यह सब यूं ही नहीं होता — यह सब काल की उस गहरी योजना का भाग होता है, जिसे हम "दुर्घटना" या "चूक" कहकर टाल देते हैं।

भारतीय दृष्टि में समय केवल भौतिक प्रवाह नहीं, बल्कि आत्मिक स्थिति है। जब भीतर सत्य होता है, तो समय भी शुभ होता है; जब भीतर छल और भय होता है, तो युग भी कलुषित हो उठता है। सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग — ये किसी कैलेंडर के पृष्ठ नहीं, बल्कि मानव मन की अवस्थाएँ हैं। जब हम सत्य से विमुख होते हैं, तो कलियुग हमारे भीतर उतर आता है। और जब हम पुनः प्रकाश की ओर बढ़ते हैं, तो युग स्वयं बदलने लगता है।

इतिहास लौटता है, क्योंकि मनुष्य भूलने का अभ्यस्त है। वह स्मृति को बोझ समझता है, और अनुभव को केवल कहानियों में बदल देता है। वह सोचता है कि पिछली भूलें किसी और की थीं, और अगला पतन कभी उसका नहीं होगा। पर समय साक्षी है — वह न दंड देता है, न क्षमा करता है। वह बस अपनी गति में सब कुछ लौटा लाता है — वह चेहरों को बदलता है, पर चरित्रों को नहीं।

यह चक्र अमिट है। इसे कोई बंद नहीं कर सकता। परंतु इसमें पीस जाना भी अनिवार्य नहीं। जो जागरूक होता है, जो इतिहास को केवल बीता हुआ नहीं, चेतावनी मानता है — वह इस चक्र के केंद्र में खड़ा रहता है। वही केंद्र, जहाँ गति नहीं होती, केवल दृष्टि होती है। वही बिंदु, जहाँ से ऋषियों ने समय को देखा — न भय से, न मोह से, बल्कि सम्यक बुद्धि से।

काल कोई राक्षस नहीं, वह एक परीक्षा है। वह हर युग से पूछता है — "क्या तुमने पिछली बार से कुछ सीखा?" यदि उत्तर नहीं है, तो परिणाम वही होगा — केवल पात्र बदलेंगे, मंच नया होगा, पर अभिनय वही रहेगा। इसलिए इतिहास को दोहरने से रोकना असंभव है, पर उसमें अपनी भूलों को दोहराना रोका जा सकता है। और यही मानव चेतना की सबसे बड़ी विजय होगी — कालचक्र के भीतर रहते हुए, उसके पार देख पाना।

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